hindisamay head


अ+ अ-

कविता

सीढ़ियों का महादेस

प्रदीप त्रिपाठी


महादेस में सीढ़ियाँ कभी खत्म नहीं होती

सीढ़ियाँ बौना कर देती हैं पहाड़ों को

और बना देती हैं उनकी आत्मा में सुराख।

 

यकीनन सीढ़ियों का अपना अतीत होता है

नदियों की रूह तक उतरती हैं सीढ़ियाँ

सीढ़ियाँ उम्मीद को बचाए रखती हैं।

 

जैसे-जैसे हमारे सपनों तक उतरती हैं सीढ़ियाँ

सीढ़ियाँ कम होती जाती हैं

और सीढ़ियों का कद बढ़ता जाता है

याद रहे साथियों!सीढ़ियाँ कम होती हैं,सीढ़ियाँ कभी खत्म नहीं होती।

 

सीढ़ियाँ लंबे समय तक विचारों को जिंदा रखती हैं

विचारों को गुलाम नहीं बनाती सीढ़ियाँ

सीढ़ियाँ नहीं करती हैं पक्षपात

सीढ़ियां अपने इतिहास का गवाह बनती हैं।

 

सीढ़ियों ने धर्म को बचाए रखा

धर्म ने नफ़रत को

नफ़रत ने हिंसा को

हिंसा की आग में जल रहा है मेरा देश

सीढ़ियों का महादेस।

 

सीढ़ियाँ अपनी ही सभ्यता को दे रही हैं चुनौती

ढूंढ़ रही हैं अपना वजूद

अपने-अपने बुद्ध,गांधी,कबीर और रविदास को

बनी रहेंगी सीढ़ियाँ

बचा रहेगा देश

मेरा महादेस

जी हाँ !

सीढ़ियां एक खूबसूरत दुनिया बनाना चाहती हैं।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में प्रदीप त्रिपाठी की रचनाएँ